Monday, April 19, 2010

Poem

कल की किताब पर आज की स्याही से
खींची है आने वाले कल की तस्वीर

ना आज का पन्ना साफ़ है
ना कल का होगा
कोरे पन्ने पर झलकेगी
कल की काली परझाई

ना दिन का उज्जला होगा
ना चांदनी रात
ज़िन्दगी की दुल्हन ओडे होगी
अमावस का घूंघट


काल का पहिया ऐसा घूमेगा
आज जो हँसता है, कल रोयेगा
आज का राजा कल फकीर बन रस्ते पर सोएंगा

तू जो बीज बोएगा
कल वही फल खायेगा
ना चाहते हुए भी अपने बुरे कर्म
यहीं भोग कर जायेगा

कल की किताब पर आज की स्याही से
खींची है आने वाले कल की तस्वीर

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