Tuesday, September 18, 2018

Poem-तेरे आँचल में छुपा ले माँ


तेरे आँचल में छुपा ले माँ
यह दुनिया अब मेहफ़ूज़ नहीं
खुले आकाश में उड़ते पंछी के
कैद होने में देर नहीं
सैयाद जैसी नज़रो से
बचना अब आसान नहीं
निर्भय जीना अब आम नहीं

लोगों ने खेलने का नया खिलौना बना लिया
ख़रीदा, पकड़ा, दबा लिया
भर गया मन  तो तोड़ कर नया पा लिया
खिला नहीं फूल उससे पहले मसला गया
खिला नहीं मन उससे पहले दबोजा गया
तेरे आँचल में छुपा ले माँ
यह दुनिया अब मेहफ़ूज़ नहीं
 
तू क्यों लाई मुझे इस दुनिया में माँ?
अब लाई है तो तेरे आँचल में छुपा ले माँ
बाहर नहीं जाना अपना चेहरा नहीं दिखाना
मैं हूँ यह किसी को ना बताना
तू क्यों नहीं कहती सबको मैं इंसान हूँ, माटी का का पुतला नहीं
मेरी भी ख्वाइशें हैं मैं खिलौना नहीं
खुले आकाश में उड़ना अब ख्वाइश नहीं; बस इज़्ज़त से जीना है और कुछ चाहिये नहीं 
तेरे आँचल में छुपा ले माँ
यह दुनिया अब मेहफ़ूज़ नहीं

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