Thursday, November 6, 2014

Poem-क्यों ऐसा होता है?

क्यों ऐसा होता है?


आज वो कमरा पराया लगा 
जो कल सिर्फ़ मेरा था 
आज उसकी हर चीज़ अलग थी 
जिसे कभी हाथोँ से सवारा  मैंने था 


क्यों ऐसा होता है?


जन्म लिया जिस घर में 
वोह अपना क्यों नहीं कहलाता है?
हक से माँग लेते थे हर चीज़ 
आज क्यों संकोज होता है?
क्या बेटी का जन्म सिर्फ पराया धन कहलाने को होता है?


क्यों ऐसा होता है?


वो आगँन जहाँ अठखेलियाँ करी 
आज़ पता मेरा पूछता है 
कभी ना जाऊँगी जिन्हें छोड़कर 
आज़ उनकी याद में दिल रोता है 


क्यों ऐसा होता है?


माँ बाप की दुलारी अब घर किसी और का सँवारेगी 
छोड़ कर बाबुल की गलियां 
पहचान नई बना लेगी....... 


 

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