Wednesday, March 10, 2010

Poem-एक दिन इस पुतले को मिट्टी में मिल जाना है



नज़रों का खेल है; बातों का रेला है
यह दुनिया भी क्या मेला है?
आज तू  भीड़ में; कल अकेला है
एक दिन इस पुतले को मिट्टी में मिल जाना है
और खाली तेरा छोला रह जाना है

घमंड न कर अपने रूप का; धन का मोह बेमाना है
यह सब इस दुनिया का; येहीं रह जाना है
पाप का घड़ा एक दिन जरूर फूट जाना है;
तन साफ़ किया अब मन का मैल धोना है
एक दिन इस पुतले को मिट्टी
में मिल जाना है
और खाली तेरा छोला रह जाना है

आज का चमकता सूरज कल डूब जाना है
चाँद को भी अमावस ने खा जाना है
तो आया बंद मुठ्ठी; खुले हाथ जाना है
केवल अच्छे कर्मों का धन साथ जाना है
एक दिन इस पुतले को मिट्टी में मिल जाना है
और खाली तेरा छोला रह जाना है

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