समझा था ज़िन्ह अपना, पराये क्यों वो हुए ?
थाम्बी थी पतवार जिसने, नाँव वो माज़ी क्यों डुबोये ?
कल तक जिनके दिल में हम रहते थे ;
आज उनकी याद में दिल क्यों रोये ?
थाम्बी थी पतवार जिसने, नाँव वो माज़ी क्यों डुबोये ?
कल तक जिनके दिल में हम रहते थे ;
आज उनकी याद में दिल क्यों रोये ?